Friday, October 30, 2009

प्रेम के अंतरंग क्षणों में भी
उसके दिमाग में पक रही होती है सुबह के लिये दाल
अदृश्य हाथ काट रहे होते हैं सब्जी
घर से निकलते वक्त उसके साथ होता है एक सलीका
करीने से पहनी होती है साडी ,ढंग से बँधे होते हैं बाल
साथ ही होठों पर चिपकी होती है ढाई इंची मुस्कान
कोई भी नहीं जान पाता इस मुस्कान के पीछे छिपा है
एक थका हुआ तन और मन

1 comment:

  1. bhare ahsas se rachi gayi ye panktiyan dekhkar achha laga....aabhar!

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