औरतें कभी नहीं कह पातीं
दिल में जो सोचती हैं
कभी नहीं कर पाती ऐसे काम
जो उनका मन चाहता है
जीती हैं बस बिना किसी शर्त के
ताउम्र करती हैं बस समझौते
खुश होती रहती हैं यह देख कर
उनकी दुनिया के सभी लोग कितने खुश हैं
Monday, October 18, 2010
Sunday, August 15, 2010
सुक
सुख के दो पल
कथा-क्रम में सत्ता-परिवर्तन कविता छपी है ,बहुत खुशी हुई है। बहुत दिनों बाद यह अनुभूति प्राप्त हु ई है आप भी पढें ,प्रतिक्रिया भी दें ,अच्छा लगेगा .
कथा-क्रम में सत्ता-परिवर्तन कविता छपी है ,बहुत खुशी हुई है। बहुत दिनों बाद यह अनुभूति प्राप्त हु ई है आप भी पढें ,प्रतिक्रिया भी दें ,अच्छा लगेगा .
Wednesday, December 30, 2009
Friday, October 30, 2009
प्रेम के अंतरंग क्षणों में भी
उसके दिमाग में पक रही होती है सुबह के लिये दाल
अदृश्य हाथ काट रहे होते हैं सब्जी
घर से निकलते वक्त उसके साथ होता है एक सलीका
करीने से पहनी होती है साडी ,ढंग से बँधे होते हैं बाल
साथ ही होठों पर चिपकी होती है ढाई इंची मुस्कान
कोई भी नहीं जान पाता इस मुस्कान के पीछे छिपा है
एक थका हुआ तन और मन
उसके दिमाग में पक रही होती है सुबह के लिये दाल
अदृश्य हाथ काट रहे होते हैं सब्जी
घर से निकलते वक्त उसके साथ होता है एक सलीका
करीने से पहनी होती है साडी ,ढंग से बँधे होते हैं बाल
साथ ही होठों पर चिपकी होती है ढाई इंची मुस्कान
कोई भी नहीं जान पाता इस मुस्कान के पीछे छिपा है
एक थका हुआ तन और मन
Tuesday, October 27, 2009
छोटे बच्चे
माँ के कोप-भाजन का शिकार
अक्सर होते हैं छोटे छोटे बच्चे
घर में रिश्तों में हुआ हो विवाद
या पति-पत्नि के बीच कटु संवाद
खामियाजा भुगतते हैं छोटे-छोटे बच्चे
माँ उन्हैं पीटकर निकाल लेती है अपना गुबार
वे नहीं समझ पाते, उनकी छोटी सी गलती की सजा
कभी-कभी इतनी बडी क्यों हो जाती है ?
कुछ देर सिसकते हैं फिर भूल जाते हैं
बेवजह खाई थी मार
नन्हे हाथों से पौंछते हैं माँ की आँखों के आँसू
ऊटपटाँग हरकत करके माँ को हँसाने का करते हैं असफल प्रयास
कभी-कभी रोते-रोते जब वे सो जाते हैं
गालों पर उभरी आँसुओं की लकीरें
उनके निष्पाप चेहरे को देवतुल्य बना देती है
माँ देखती है ,फिर करती है पश्चाताप
उन्हैं गोद में लेकर बेतहाशा चूमती है
सीने से लगाकर भूल जाती है सारा संताप
मासूम चेहरे को निहारकर
आँसू हैं कि छलक उठते हैं बार-बार
माँ के कोप-भाजन का शिकार
अक्सर होते हैं छोटे छोटे बच्चे
घर में रिश्तों में हुआ हो विवाद
या पति-पत्नि के बीच कटु संवाद
खामियाजा भुगतते हैं छोटे-छोटे बच्चे
माँ उन्हैं पीटकर निकाल लेती है अपना गुबार
वे नहीं समझ पाते, उनकी छोटी सी गलती की सजा
कभी-कभी इतनी बडी क्यों हो जाती है ?
कुछ देर सिसकते हैं फिर भूल जाते हैं
बेवजह खाई थी मार
नन्हे हाथों से पौंछते हैं माँ की आँखों के आँसू
ऊटपटाँग हरकत करके माँ को हँसाने का करते हैं असफल प्रयास
कभी-कभी रोते-रोते जब वे सो जाते हैं
गालों पर उभरी आँसुओं की लकीरें
उनके निष्पाप चेहरे को देवतुल्य बना देती है
माँ देखती है ,फिर करती है पश्चाताप
उन्हैं गोद में लेकर बेतहाशा चूमती है
सीने से लगाकर भूल जाती है सारा संताप
मासूम चेहरे को निहारकर
आँसू हैं कि छलक उठते हैं बार-बार
Thursday, October 22, 2009
Thursday, October 1, 2009
आसमान
घर के कमरे सेअगर दिखता रहे
थोडा साआसमान ,तो छोटा सा कमरा भी
बहुत बडा हो जाता है
न जाने कहाँ-कहाँ से इतनी जगह निकल आती है
कि दो-चार और थके-हारे लोग
आसानी से समा जायें,पर जब कमरा भी छोटा हो
दिखे भी न कहीं से आसमान
तब कहाँ जायें ऐसे में ,कहीं भी तो नहीं दिखती
कोई और जगह ?
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